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Preeti's Blog - March 2025

Author: Preeti Poddar Head Ground Operations, Protsahan India Foundation

दिल्ली की झुग्गियों में प्रशिक्षित प्रोत्साहन युवा लीडर्स द्वारा सरकारी लिंकज शिविर—प्रवासी मज़दूरों को ई-श्रम, वोटर ID, आय व जाति प्रमाणपत्र, आधार आदि से जोड़ा गया। सामाजिक सुरक्षा की शुरुआत पहचान से होती है।

दिल्ली हमेशा से एक ऐसा शहर रहा है, जहाँ लोग बेहतर जीवन और सुनहरे भविष्य की उम्मीद में आते हैं। लेकिन जब हम ‘विकसित भारत’ और उसकी राजधानी की बात करते हैं, तो सिर्फ गगनचुंबी इमारतें, आधुनिक शिक्षा, प्रतिस्पर्धा और सत्ता की ताकत की चर्चा होती है। कोई यह नहीं देखता कि इसी दिल्ली में, भारत की राजधानी में, आज भी हजारों बच्चे बाल विवाह, बाल श्रम और बाल अधिकारों के हनन का शिकार हो रहे हैं।

हमारी कम्युनिटी विजिट के दौरान हम कजरी से मिले, जिसकी उम्र 35 साल है। उसके माता-पिता ने उसकी शादी महज 12 साल की उम्र में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में कर दी थी। उसका पति उस समय 21 साल का था, जो शादी के बाद बेरोजगार और शराबी निकला।

घरेलू हिंसा उसकी ज़िंदगी का हिस्सा बन गई। चार बेटियों के जन्म के बाद भी उसका संघर्ष खत्म नहीं हुआ। गाँव में गुज़ारा मुश्किल होता देख, उसने दिल्ली आने का फैसला कियाआँखों में एक ही सपना था, मेहनत करूंगी, बेटियों को पढ़ाऊंगी, उनका भविष्य संवारूंगी।

लेकिन उसकी उम्मीदें शीशे की तरह बिखर गईं। पति ने मजदूरी से मिले पैसे घर चलाने के बजाय शराब में झोंक दिए। हालत इतनी खराब हो गई कि उसने मजबूरी में अपनी बड़ी बेटी का भी बाल विवाह कर दिया।

मीनाक्षी और पायल: नई पीढ़ी, वही संघर्ष

कजरी की दूसरी बेटी मीनाक्षी थायरॉइड से जूझ रही है, जिससे उसका शरीर फूला रहता है और वह अक्सर बीमार रहती है। उसे हमने सेंटर से जोड़ा, लेकिन उसकी सेहत उसे वहाँ नियमित आने से रोक रही है।

तीसरी बेटी पायल पिछले तीन महीनों से हमारे सेंटर में आ रही है। लेकिन उसे घर के सारे काम करने पड़ते हैं और सब्जी के ठेले पर भी बैठना पड़ता है, जिससे वह रोज़ सेंटर नहीं आ पाती।

एक दिन जब पायल आई, तो उसका मुँह सूजा हुआ था, हाथों पर खरोंच के निशान थे। जब हमने उससे बात की, तो उसने बताया – “मम्मी ने बहुत मारा, सीने पर पैर रखकर चढ़ गईं, क्योंकि मैंने दुकान से 20 रुपये चुराकर चिप्स खरीद लिए थे और रास्ते में एक जान-पहचान वाले भैया से बात कर ली थी।”

जब हमने कजरी से बात की, तो उसने कहा,”दीदी, मैं सुबह मंडी जाती हूँ, फिर ठेले पर सब्जी लगाकर बाजार जाती हूँ। मेरे पास बच्चों पर ध्यान देने का वक्त ही नहीं है। जब मुझे पता चला कि पायल लड़कों से बात कर रही है, तो मेरा खून खौल गया। मैं खुद पर काबू नहीं रख पाई और गुस्से में उसे मार दिया।”

कजरी का संघर्ष: ज़िम्मेदारियाँ

कजरी की आर्थिक स्थिति दयनीय है। वह सब्ज़ी बेचकर किसी तरह घर चला रही है, जिसमें उसकी बेटियाँ भी मदद करती हैं। उसका पति शराब में डूबा रहता है, जिससे सारा बोझ कजरी के कंधों पर आ गया है।

परिवार एक किराए के मकान में रहता है, जिसका किराया 2500 रुपये है। कई बार घर में खाने को कुछ नहीं होता, और उसे अपनी बेटियों के साथ भूखा रहना पड़ता है।

लेकिन सबसे ज्यादा दर्दनाक बात यह है कि उसका पति सिर्फ इस बात से परेशान रहता है कि कजरी ने उसे बेटा नहीं दिया। जिस विकसित भारत की हम बात करते हैं, वहाँ आज भी पितृसत्ता इतनी गहरी है कि बेटियों को बोझ समझा जाता है और माँ-बाप मजबूर होकर अपनी बेटियों के साथ अन्याय करते हैं।

प्रोत्साहन इंडिया फाउंडेशन इन मुद्दों पर गहराई से काम कर रहा है। हमें सरकार, नागरिक समाज, मीडिया और आम जनता को साथ लाकरफोर्स मल्टीप्लायरकी तरह काम करने की जरूरत है।

फिलहाल, पायल को केंद्र से प्रोटीन पोषण समर्थन, वेलबीइंग काउंसलिंग, छात्रवृत्ति और शैक्षिक सहायता प्राप्त हो रही है। पायल के परिवार को भी सरकारी योजनाओं से सीधे जोड़ा गया है। यह आघात-संवेदनशील देखभाल उन बच्चों के लिए संजीवनी बनती है, जो समाज के हाशिये से भी फिसल जाते हैं।

दुनिया के दुःख को देखना आसान नहीं, यह बोझ हर पल दिल पर रहता है, पर हम सोशल वर्कर्स तो वो दीप के जैसे हैं जो काले अंधेरों में भी न्याय, सहारा और आस लेकर चलते हैंयह सौभाग्य (प्रिविलेज) भी कम नहीं।

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