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उच्च शिक्षा और कौशल विकास के जरिए संभावनाओं की उड़ान: प्रवासी लड़कियों का ट्रॉमा-संवेदनशील सशक्तिकरण

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Author: Govind Rathore, STEM and DigiLab Program

हम अक्सर बात करते हैं कि शिक्षा और कौशल किसी एक लिंग तक सीमित नहीं हैं, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि रोजगार के अवसर और उच्च शिक्षा पितृसत्तात्मक समाज में ज्यादातर लड़कों तक ही सीमित हैं। कई बार बारहवीं कक्षा के बाद कॉलेज में दाखिला केवल लड़कों को मिलता है, जबकि लड़कियों को घर की जिम्मेदारियों और शादी के बोझ तले दबा दिया जाता है। शिक्षा और कौशल सीखने में प्राथमिकता ज़्यादातर लड़कों को ही दी जाती है, और संसाधन भी उन्हीं पर खर्च होते हैं। इसलिए, उच्च शिक्षा और कौशल विकास के अवसरों का विस्तार करना बेहद महत्वपूर्ण है, ताकि युवा लड़कियां पितृसत्तात्मकता से बने इस अंतर को पाट सकें और अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण प्राप्त कर सकें।

छात्रवृत्तियाँ, ट्रॉमा-संवेदनशील परामर्श, डिजिटल कौशल, और औपचारिक रोजगार: परिवार की आय और जीवन स्तर में सुधार का सशक्त मार्ग

बिहार के वैशाली जिले से पलायन करके ज़ोया और आफरीन का परिवार दिल्ली में रहता है। उनके पिता ऑटो रिक्शा चलाते हैं और परिवार में कुल 7 सदस्य हैं। बारहवीं कक्षा करने के बाद इन दोनों बहनों के पास कॉलेज या यूनिवर्सिटी जाने के लिए संसाधन नहीं थे, क्योंकि उनके पिता जितना कमाते थे, उससे घर का खर्च मुश्किल से चल पाता था। जब वे प्रोत्साहन से जुड़ीं, उन्हें छात्रवृत्ति दी गई और डिजिटल कौशल सिखाए गए। इससे उन्होंने अपने लिए रोजगार के अवसर खोजने का मौका पाया। उन्होंने अकाउंटिंग सॉफ्टवेयर और डेटा हैंडलिंग का काम कुशलता से सीखा और नौकरी करनी शुरू की। उन्होंने अपने परिवार की आय को 9,000 से 35,000 रुपये तक बढ़ा दिया और समाज में यह उदाहरण पेश किया कि लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं, बशर्ते उन्हें अवसर मिले।

एक और उदाहरण – स्नेहा, 20 वर्ष की एक युवती, वाराणसी की प्रवासी है, जो परिवार के साथ उत्तम नगर के जे. जे. कॉलोनी में रहती है। बारहवीं कक्षा के बाद उसके समुदाय में अधिकांश लड़कियों की शादी कर दी जाती है। उसके पिता एक दिहाड़ी मजदूर हैं, जिन्हे काम कभी मिलता है, कभी नहीं। घर में 6 सदस्य हैं। स्नेहा ने प्रोत्साहन में डिजिटल स्किल्स सीखने के लिए भाग लिया और हमें पता चला कि पैसे की कमी के कारण वह कॉलेज नहीं जा सक रही थी। हमने उसे छात्रवृत्ति दी, जिससे उसने दिल्ली यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। डिजिटल स्किल्स सीखकर उसने नौकरी खोजने में मदद पाई और अब वह एक कंपनी में काम कर रही है, अपनी पारिवारिक आय को 9,000 से 21,000 रुपये तक बढ़ा चुकी है।

प्रोत्साहन के पास डिजिटल कौशल विकास के लिए आने वाली प्रवासी लड़कियाँ गरीबी और लिंग आधारित भेदभाव की परिस्थितियों से प्रभावित होती हैं। लेकिन जब उन्हें अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त समर्थन मिलता है, तो वे उड़ान भरने के लिए पंख पा लेती हैं।

उनके परिवार की आय में वृद्धि के साथ-साथ उन्हें जीवन पर अधिक नियंत्रण मिलता है, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार होता है, और गतिशीलता बढ़ती है। इसके अलावा, यह सफलता समुदाय में अन्य लड़कियों को शिक्षा और रोजगार प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित करती है, जिससे समाज में सकारात्मक बदलाव की एक लहर पैदा होती है!

इस ही तरह है, बिहार के बेगूसराय की प्रवासी 20 वर्षीय आयेशा, जिसके पिता मछली बेचकर परिवार का बहुत मुश्किल से पालन-पोषण करते थे। पिता की आय बहुत सीमित होने के कारण मुस्कान ने यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने का विचार बिल्कुल त्याग दिया था। उसने हमसे कहा, जब घर में खाने के लिए भी पैसे नहीं थे, तो यूनिवर्सिटी में कैसे दाखिला ले सकती हूँ?” वह STEM स्किल्स सीखने के लिए प्रोत्साहन आने लगी। कोर्स पूरा करने के बाद उसने एक हॉस्पिटल में काम करना शुरू किया और अब वह अपने स्टॉक मैनेजमेंट के काम में माहिर हो चुकी है, अपने और अपने परिवार के लिए सहारा बन गई है। मुस्कान अपने समुदाय में एक सितारे की तरह उभरी है, और उसे देखकर आस-पास के लोगों ने भी अपनी बेटियों पर विश्वास करना शुरू किया है! उसके छोटे भाई बहन भी शिक्षा के मार्ग पर चल रहे हैं। प्रोत्साहन ने मुझे सिर्फ़ कंप्यूटर या तकनीकी स्किल्स नहीं सिखाई, बल्कि मुझे एक नया जीवन जीने का तरीका सिखाया। यहाँ, मुझे पहली बार ऐसा महसूस हुआ कि कोई मेरी बातें गहराई से समझ रहा हैमेरी भावनाओं, मेरी तकलीफों और मेरे संघर्षों को। प्रोत्साहन ने मुझे एक ऐसा सहारा और मार्गदर्शन दिया जो पूरी तरह से ट्रॉमासंवेदनशील था। उन्होंने सिर्फ़ मेरी क्षमताओं को नहीं, बल्कि मेरे दर्द को भी समझा, और उसी के अनुसार मुझे सशक्त बनाया। यहाँ पर मुझे सिर्फ़ सीखने का मौका नहीं मिला, बल्कि एक ऐसा परिवार मिला जिसने मुझे गहराई से cared for महसूस कराया, ताकि मैं अपने भविष्य की ओर मजबूती से कदम बढ़ा सकूँ।

डिजिटल दाखिला और पाठ्यक्रम: लड़कियों को नई बुलंदियों तक पहुंचाने की दिशा में एक कदम

प्रेरणा B.A. के फाइनल ईयर में दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा है, और वह NIELIT की परीक्षा पास करके अब एडवांस डिजिटल मार्केटिंग का कोर्स कर रही है) प्रेरणा कहती है, आज के युग में नौकरी पाने के लिए डिजिटल साक्षरता बहुत जरुरी है, और लड़कियों के लिए नौकरी जिंदगी में बदलाव का पहला कदम है। जबसे मेरी नौकरी लगी है, तबसे पता चला है कि मुझमें कितनी सारी खूबियाँ हैं! अब परिवार के लोग मेरी राय ज़्यादा सुनते हैं। प्रोत्साहन ने मुझे सिर्फ़ डिजिटल स्किल्स नहीं सिखाई। यहाँ, मनोवैज्ञानिकों, काउंसलरों और युवा साथियों ने मेरी ज़मीनी हक़ीक़तों को समझा और बेइंतहा समर्थन प्रणाली बनाई ताकि मैं सफल हो सकूँ।

दिल्ली विश्वविद्यालय और अन्य विश्वविद्यालयों में डिजिटल दाखिला प्रक्रिया और ऑनलाइन असाइनमेंट कार्य में प्रोत्साहन के डिजिटल लैब से हजारों लड़कियों को सहारा मिलता है। डिजिटल डिवाइस और इंटरनेट के जरिए उनकी राह आसान बनती है। डिजिटल और STEM कौशल के माध्यम से लड़कियाँ खुद को सशक्त बना रही हैं और समाज में एक परिवर्तनकारी सोच विकसित कर रही हैं। प्रोत्साहन के डिजिटल लैब में हाल ही में 11 लड़कियों ने NIELIT की परीक्षा उत्तीर्ण की और भारत सरकार की ओर से प्रणाम पत्र प्राप्त किया।

रौशनी गोरखपुर जिले (उत्तर प्रदेश) की प्रवासी है, और उसके पिता नहीं हैं। उसकी मां घरों में सफाई का काम करती हैं। उनकी कमाई बहुत कम है, जिससे चार भाई-बहनों का पालन-पोषण मुश्किल से हो पाता है, कभी-कभी पैसे उधार भी लेने पड़ते हैं। जब रौशनी 18 साल की थी और दसवीं कक्षा के बाद आगे पढ़ने के साधन नहीं थे, तब उसने प्रोत्साहन से जुड़ने का निर्णय लिया। वहां उसने डिजिटल स्किल्स सीखना शुरू किया और उसे 12वीं कक्षा के लिए छात्रवृत्ति भी प्रदान की गई।

अपना कोर्स पूरा करने और ओपन स्कूल से बारहवीं कक्षा पास करने के बाद, रौशनी ने एक फर्म में डेटा एंट्री का काम करना शुरू किया। उसने अपनी माता जी को सहयोग दिया, और आज रौशनी 14,000 रुपये मासिक वेतन पाती है, जिससे वह अपने परिवार के जीवन स्तर को सुधार रही है। यह तो बस शुरुआत है, रोशनी के भविष्य में जो संभावनाएँ हैं उनकी।यह वेतन छोटा लग सकता है, लेकिन यह समझना ज़रूरी है कि यह औपचारिक क्षेत्र की नौकरी का पहला वेतन है और अब रोशनी घरेलू सहायिका नहीं, बल्कि तकनीकी क्षेत्र की नौकरी में प्रगति कर रही है।

हम हर एक रौशनी को समर्थन देना चाहते हैं ताकि वह जीवन में आगे बढ़ सके और जान सके कि वह क्या क्या कर सकती है। हम चाहते हैं कि हर रौशनी अपने कौशल और क्षमताओं के माध्यम से एक नई पहचान बनाए और अपने जीवन स्तर को बहतर बना सके।

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